हज़रत सुलेमान अलै. ने फिर दुआ फ़रमाई तो परिंदों के सरों से सोने का ताज ग़ायब हो गया
अल्लाह पाक ने हर तख़लीक़ में कोई हिक्मत रखी है। परिंदों की बात करें तो कुरआन-ए-पाक में एक परिंदे का ज़िक्र आता है, जिसका नाम हुद हुद है। देहाती इलाक़ों में इसको लकड़हारा भी कहते हैं, क्योंकि इसकी चोंच बहुत लंबी होती है जिससे वो दरख़्तों में सुराख़ करने की ताक़त रखता है, उनमें से एक परिंदा हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में भी रहा करता था। उस परिंदे में एक ख़ुदादाद सलाहियत थी कि ये ज़मीन के अंदर मीठे पानी का पता लगा लेता, जो क़रीब होता, और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम उसी परिंदे की तसदीक़ पे वहाँ पड़ाव डाल लेते ताकि सारे लश्कर के लिए पानी की दस्तयाबी में सहूलत रहे…। मुल्के सबा की मल्लिका बिल्क़ीस की इत्तिला भी हुदहुद ने ही आ के हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को दी थी…। हुदहुद के ख़िदमत के इव्ज़ एक दफ़ा हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने उन्हें इनाम से नवाज़ना चाहा तो उनके गिरोह को बुला के फ़रमाया कि, तुम सब आपस में मश्वरा कर लो, कि तुम्हें क्या इनाम दिया जाये, जो ख़ाहिश करोगे वो अल्लाह पाक पूरी फ़रमाएगा…।
उन परिंदों ने आपस में सोच विचार करके, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के सामने इस ख़ाहिश का इज़हार किया कि हमारे सर के ऊपर एक सोने का ताज बन जाये, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने उनको बार-बार सोचने का मौक़ा दिया, लेकिन वो अपनी इस ख़ाहिश पे ब-ज़िद रहे तो आख़िर-ए-कार हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुज़ूर दुआ फ़रमाई और अल्लाह पाक ने हुद हुद की सारी नसल के सरों पे सोने का ताज बना दिया, बस फिर क्या था कि लोगों ने हुदहुद की नस्ल को सोने के हुसूल के लिए शिकार करना शुरू कर दिया, चंद दिनों में ही उनकी नस्ल ख़त्म होने के क़रीब आ गई…। वो एक गिरोह की शक्ल में हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और आ के अपनी तबाही का हाल बयान किया, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फिर अल्लाह पाक से दुआ फ़रमाई तो उन परिंदों के सरों से सोने का ताज ग़ायब हो गया और उसकी जगह अभी तक एक ताज की तरह की कलग़ी मौजूद है…।
हमारी बहोत सारी ख़्वाहिशें और दुआएं पूरी होने के बाद भी हमें बेसुकून और तकलीफ़ दी जाती है। हमें इस बात का भी ख़्याल रखना चाहिए कि हमारी माँगी गई दुआ किसी के लिए वबा तो नहीं…। हम दुनिया माँगते हैं, और दीन चाहते हैं। जैसे सरदार अब्दुल रब नशतर ने एक बुज़ुर्ग से दुआ करवाई कि मैं गवर्नर बन जाऊँ, उस बुज़ुर्ग ने दुआ की, अल्लाह पाक ने उसे गवर्नर बना दिया, कुछ अर्से बाद फिर हाज़िर हुआ कहने लगा कि सुकून नहीं मिला अभी तक, बुज़ुर्ग फ़रमाने लगे कि सुकून तो आपने अब माँगा है पहले तो गवर्नरी मांगी थी…।
वो गवर्नरी में ही सुकून समझे थे, बस ऐसे ही अगर हम शोहरत और दौलत माँगेगे तो दुश्मन और डर तो साथ आएगा ही हमारी कई दुआएँ दूसरों की तबाही और रुस्वाई के मुताल्लिक़ होती हैं, हम अल्लाह से अल्लाह के सिवा हर चीज़ माँगते हैं, और यही हमारी बदनसीबी है…।
-ब ज़रिये ‘तनवीर त्यागी’