अंघूठे चूमे या दरूद शरीफ पढ़े ?
मुहम्मद तय्यब अंसारी
आज के दोर में हम बहुत से अपने भाइयो को देखते है के जब हुज़ूर सल0 का नाम उनको सुनाई देता है । तो वो अपने अंघूठो को चूमने लगते है । क्या है इसकी हकीकत आईये क़ुरानो हदीस की रौशनी में इसका फैसला करते ।
क़ुरआन शरीफ के 22 पारेह में सूरह अहज़ाब के 7 सातवे रूकूअ में आयत नंबर 56 में अल्लाह ताला इरशाद फ़रमाता है ।
तर्जुमा:= अल्लाह ताला और उसके फ़रिश्ते उसके नबी पर दरूद भेजते है। ऐ ईमान वालो तुम भी उन पर दरूद भेजो । और अच्छी तरह सलाम भी भेजते रहो ।
मेरे अज़ीज़ दोस्तों अपनी ईमानदारी से फैसला करना इस बात का के जब हुज़ूर नबी करीम सल0 का नाम मुबारक सुने तो क्या करना चाहिए ?
अपने हाथ के दोनों अंघूठे चूम कर आँखों पर रखने चाहिए या दरूद शरीफ पढ़ना चाहिए ?
आयत शरीफ में तो दरूद पढ़ने के लिए अल्लाह ताला अपने ईमान वाले बन्दों को ताक़ीद कर रहा है और हिन्दुस्तान के बाज़ मुसलमान भाई हुज़ूर सल0 का नाम मुबारक सुनते है तो अपने दोनों हाथ के अंघूठे चूम कर अपनी आँखों पर लगाते है और जो इस तरह ना करे उसको मुसलमान ही नही समझते बल्कि वहाबी और इस्लाम से खारिज समझते है । ये है हमारे हिन्दुस्तान के मुसलमान भाइयो की जहालत इस मुसीबत में सिर्फ जाहिल लोग ही नही बल्कि अपने आप को पीर और मोलवि कहलाने वाले भी मुबतला है ।
अब सुने हदीस - मेरे दोस्त पहले आपको वो हदीस सुनाऊ जिससे ये लोग अंघूठे चूमने का सबूत लेते है ।
हदीस := एक रोज़ सल0 20 बीसवे मुहर्रम बरोज़ जुमा पेशे नमाज़ मस्जिद में तशरीफ़ लाये और सुतून से मिलकर बैठे और हज़रत बिलाल रजि0 अज़ान देने लगे जब ( अशहदु अन्ना मुहम्मदर रसूल्लाह ) पर पहुँचे तो हज़रत अबूबकर सिद्दीक रजि0 ने अपने दोनों हाथ के अंघूठे अपनी दोनों आँखों पर फेरे और कहा मेरी आँखों की ठंडक या रसूल्लाह सल0 आप ही से है ।
जब अज़ान हो गयी तो हुज़ूर सल0 ने फ़रमाया ऐ अबूबकर जो कोई यु कहे करे शोक और मुहब्बत में जिस तरह तुमने कहा और किया तो बख्शेगा अल्लाह ताला गुनाह उसके क़दीमो जदीद, अज़्मो खता, पोशीदाह और जाहिर और में शफी हूँ बख्शवाने वाला उस के गुनाहो का । हवाला-= तफ़रीह आला ज़किया , फि अहवाल अलम्बिया, जिल्द 2 सफ़ा 121 अज़ान का बयान ।
मेरे अज़ीज़ दोस्तों । ये है वो हदीस अंघूठे चूमने की । इस हदीस पर आज कल इस क़दर ज़ोर दिया जाता है के अंघूठे ना चूमने वाल कोे मुसलमान ही नही समझते इस दहशत से बाज़ गरीब जाहिल अनपढ़ भाइयो को हमने अपनी आँखों से देखा है के वो अज़ान देते देते जब ( अशहदु अन्ना मुहम्मदर रसूल्लाह ) कहते है तो फोरन बड़ी फुर्ती से अपने दोनों कानो में से उँगलियाँ निकाल कर अपने दोनों हाथ के अंघूठे चूम कर अपनी आँखों पर लगा लेते है फिर फोरन ही बड़ी तेज़ी के साथ चालु अज़ान में उँगलियाँ अपने कानो में डाल लेते है ।
है कोई हद जहालत की । इस बेचारे गरीब के दिल में फितना खोरो ने ऐसी दहशत बैठा दी है के अगर में अंघूठे चूम कर आँखों पर ना लगाऊ तो में इस्लाम से निकल जाऊँगा हाय रे हिन्दुस्तान की जहालत ।
मेरे अज़ीज़ दोस्त। ऐसा कुछ भी नही है । आप ने भी देखा होगा के केसी वाज़या मजलिस में यही लोग फसाद फैलाने वाले खुद भी कभी कभी अंघूठे चूम कर अपनी आँखों पर नही लगाते । फिर आप क्यों इतना डरते है ।
मेरे दोस्त । ये एक देखा देखि बात चली है ।
किसी ने पूरी तहक़ीक़ नही की । आपने नही देखा और अगर ना देखा हो तो देख लेना के वअज़ करने वाले या मजलिस पढ़ने वाले अपने हाथ के अंघूठे चूम कर अपनी आँखों पर लगाएंगे जब तो क़रीब क़रीब सब उनकी देखा देखि अपने अपने अंघूठे चूम कर आँखों पर लगाएंगे और अगर कोई ऐसा मोलवी वअज़ करता है जो अपने अंघूठे चूमता भी नही और आँखों पर लगाता भी नही तो सारी की सारी मजलिस वाले अंघूठे चूमने और आँखों पर लगाने से रुक जायेंगे । जो चालू अज़ान में कानो से उँगलियाँ निकाल कर अंघूठे चूमने वाले है वो भी उस मजलिस में रुक जाते है क्योंकि वो वअज़ करने वाले मोलवी साहब अंघूठे नही चूमते ।
इसलिए दुसरे भी नही चूमते
मेरे भाई इसको बोलते है बगैर तहक़ीक़ की हुई रसम।
अब सुनिए सही बात इस बारे में क्या है ।
मेरे दोस्त में किसी फिरके की तरफ से आपको जवाब नही दे रहा हु और आप अपने दिल में ये ख्याल भी ना करना के में किसी फिरके की तरफ से आपको समझा रहा हु । में खुदा की क़सम खा कर कहता हु के में हनफ़ी मसलक को मानने वाला हु और जो बात में आपके सामने कर रहा हु इसकी हक़ीक़त हनफ़ी मसलक में किया है । वो आपके सामने पेश कर रहा हु । अब सुन लीजिये इसकी हकीकत । जो हदीस अंघूठे चूम कर आँखों लगाने की आपने पढ़ी इसको उलेमाये हनफ़ी ज़ईफ़ कहते है । और बाज़ कहते है के ये हदीस बनावटी है । इस बात को मद्देनज़र रख कर इस हदीस को क़ुबूल नही किया । और जो सही हदीसो की किताबे है मसलन सही बुखारी शरीफ, सही मुस्लिम शरीफ, तिर्मिज़ी शरीफ, अबू दाऊद शरीफ, निसाई शरीफ, इब्ने माज़ा शरीफ, जिन पर हमारे हनफ़ी मसलक का अमल है । उन में ये हदीस नही है । इस हदीस को मुहद्सीन रेहमहम अल्लाह ताला ने अपनी किताबो में नही लिखा । बल्कि इस हदीस को सिवा नेहउमरी, तसव्वुफ़ और वअज़ करने वालो ने बाज़ गैर मुअतबर किताबो में लिखा है ।
अब हमारे लिए गोर तलब बात ये है के हमारे उलामाये दीन और फिकहाये किराम ने इस हदीस को नही लिखा और ना क़ुबूल किया और हदीसे लिखने वाले मुहद्सीन ने भी सहा सित्ता वगेरह के अंदर इस हदीस को अपनी किताबो में ना लिखा और ना क़ुबूल किया तो फिर अंघूठे चूमने चाटने के लिए लड़ाई, झगड़ा करना या ना कराना और लोगो को अंघूठे चूमने पर मजबूर करना और अंघूठे ना चूमने वालो को हक़ीर नज़रो से देखना, या इस्लाम से खारिज समझना इस्लाम के सरासर खिलाफ है ।
अंघूठे चूम कर आँखों पर लगाना सुन्नत, वाजिब, या फ़र्ज़ नही है बल्कि आप इसको दर्जा भी देंगे तो मुस्तहब, मुस्तहन, या मुबा के सिवा कुछ भी नही दे सकते और जिस मुबाह का ये हाल हो के सुन्नत, और वाजिब और फ़र्ज़ तो बरसरआम तर्क हो रहे हो लेकिन इस मुबाह को छोड़ना सुन्नत, वाजिब, और फ़र्ज़ से भी ज़्यादा बुरा समझते हो तो उस वक़्त इस मुबाह को पर अमल करने के लिए हमारे उलेमाये हनफ़ी का फतवा सुने ।
फतवा:= जिस मुबाह को सुन्नत या वाजिब समझ लिया जाय वो मकरूह है ।
हवाला := फतावा आलमगीरी जिल्द 1 सफ़ा 191 सजदाह तिलावत का बयान ।
मकरूह से मुराद मकरूह तेहरीमि है । मेरे अज़ीज़ दोस्त । जो लोग अंघूठे चूमने वाले है उन लोगो में ज़्यादातर को हमने अपनी आँखों से देखा है और आपको यकीन ना हो तो आप खुद देख लेना के ये अंघूठे चूमने वाले सुन्नत रसूल अल्लाह सल0 से कोसो दूर होते है और जो मोलवी या पीर कहलाते है उन में से भी बाज़ लोगो का ये हाल है के वाजिब और फ़र्ज़ का भी ठिकाना नही होता । जिन मोलवी और पीर साहिबान का ये हाल हो उन के मुरीदो का किया हाल होगा । इसका अंदाज़ा आप खुद ही लगाइये ।
अंघूठे चूम कर आँखों पर लगाने की जो हदीस है वो बनावटी है । लेकिन सही हदीसो पर कुछ गोर और फ़िक्र नही करते जिनसे दरूद शरीफ का पढ़ना साबित होता है । क्योंकि एक तो ये आयत करीमा है जो आपने ऊपर पढ़ ली । अब सुनिए वो हदीसे जिनसे हुज़ूर सल0 का नाम मुबारक सुनते वक़्त आप सल0 पर दरूद शरीफ का पढ़ना वाजिब साबित हुआ ।
हदीस := हज़रत अली रजी0 फरमाते है के रसूल्लाह सल0 ने फ़रमाया, वो शख्श बख़ील है जिसके सामने मेरा ज़िक्र किया जाए ( यानी नाम लिया जाय ) और वो ( सुनने वाला ) मुझ पर दरूद ना भेजे ।
हवाला := तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2 सफ़ा 333 हदीस 1394 दुआ का बयान ।
हदीस:= हज़रत इब्ने मसऊद रजि0 से रिवायत है के रासुल्लाह सल0 ने फ़रमाया, एक क़ोम मेरी उम्मत में होगी जिसको क़यामत में अल्लाह ताला हुक़्म देगा के जन्नत में जाओ । वो लोग हैरान होंगे के अब जन्नत का रास्ता कौन बताये । लोगो ने पुछा या रसूल्लाह सल0 वो कौन लोग होंगे, आप सल0 ने फ़रमाया जिनके सामने मेरा ज़िक्र किया गया ( यानी नाम लिया गया ) और गफलत और भूल की वजह से उन्होंने मुझ पर दरूद नही भेजा ।
हवाला:= दररतुलनन्या सहींन जिल्द 2 सफ़ा 58 ।
हदीस := हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रजि0 से रिवायत है के में सेहरी के वक़्त कोई चीज़ सिल रही थी, अचानक मेरे हाथ से सूई गिर पड़ी और चिराग भी भुझ गया और रात अंधेरी थी । बस रसूल्लाह सल0 मेरे पास आये और उनका चेहरा मुबारक से घर रोशन हो गया । फिर मुझे सुई मिल गयी । फिर मेने पुछा के या हज़रत आप सल0 का चेहरा किया ही नूरानी है । हज़रत सल0 ने फ़रमाया या हैफ । सदहैफ । उस पर जो मुझे क़यामत के दिन ना देखेगा । मेने पुछा या रसूल्लाह वो कोन है ? हज़रत सल0 ने फ़रमाया के जिस के पास मेरा नाम लिया जाए और वो सुनने वाला मुझ पर दरूद ना भेजे ।
हवाला := तज़किरह अलवाज़ीन सफ़ा 71 दरूद का बयान ।
हदीस:= जिस के सामने मेरा ज़िक्र हो और वो मुझ पर दरूद ना भेजे तो वो बदबख्त है ।
हदीस:= हुज़ूर सल0 ने फ़रमाया के ये सितम की बात है के में आदमी के पास ज़िक्र किया जाउ और मुझ पर दरूद ना पढ़े ।
हदीस := शामि के हवाले से हदीस क़ुद्दूसी लिखी है के फ़रमाया अल्लाह ताला ने अपने रसूल सल0 से के दूर हो मेरी रेहमत से वो जिस के पास तेरा ज़िक्र हुआ और वो तुझ पर दुरूद ना भेजे ।
( इन तीनो हदीसो का हवाला ये है )👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
हवाला := गायता आलावतार उर्दू तर्जुमा दरमुखतार जिल्द 1 सफ़ा 242 नमाज़ का बयान ।
मेरे अज़ीज़ दोस्त । आप ही ईमानदारी से इन्साफ करे के हुज़ूर सल0 का नाम मुबारक सुना जाए तो क्या अंघूठे चूम कर आँखों पर रखे या दरूद पढ़े ?
हदीस := हुज़ूर सल0 ने फ़रमाया के इंसान को बखिलि के लिए ये काफी है के मेरा नाम सुन कर दरूद ना पड़े ।
हवाला := तफसीर इब्ने कसीर पारह 22 सफ़ा 31 सूरह अहज़ाब के सातवे रुकूअ की तफ़सीर में ।
हदीस := हज़रत इब्ने अब्बास रजि0 कहते है के हुज़ूर सल0 ने फ़रमाया के जो शख्श मुझ पर दरूद पढ़ेगा वो जन्नत का रास्ता ना भूलेगा ।
हवाला := इब्ने माज़ा शरीफ सफ़ा 151 हदीस 922 नमाज़ का बयान ।
हज़रत इब्ने मज़हर रजि0 कहते है के आप सल0 पर दरूद भेजने का उम्दाह तरीका जिस को जम्हूर उलेमा ने इख़्तियार किया है वो ये है के मजलिस में जितनी मर्तबा भी आप सल0 का नाम सुने तो आप सल0 पर दरूद पढ़ना वाजिब है । अगर एक मजलिस में हज़ार मर्तबा भी आप सल0 का नाम सुने - क्योंकि आप सल0 ने फ़रमाया है के जिस के पास मेरा ज़िक्र हो और वो नाम सुनने वाला मुझ पर दरूद ना भेजेगा तो वो दोज़ख में दाखिल होगा और अल्लाह उसको दूर फेकेगा और वो शख्श अपने नफ़्स को मलामत करेगा ।
हवाला := दुर्रतुलन्नासहींन जिल्द 1 सफ़ा 85 ।
हदीस := हज़रत अबू हुरेराह रज़ि0 फरमाते है के रसूल्लाह सल0 ने फ़रमाया उस शख्श की नाक खाक आलूद हो जिस के सामने मेरा ज़िक्र आये ( यानी नाम लिया जाए ) लेकिन वो ( नाम सुनने वाला ) मुझ पर दरूद ना भेजे । और उस शख्श की नाक ख़ाक आलूद हो जिस की ज़िन्दगी में रमज़ान आये फिर उससे पहले ( यानी रमज़ान खत्म होने से पहले ) उसे बख्शा ना जाये और रमज़ान ख़त्म हो जाए । और उस शख्श की नाक ख़ाक आलूद हो जिस के सामने उसके वालीदेन पर बुढ़ापा आया लेकिन दोनों ने उसको जन्नत में दाखिल ना किया ( यानी वो अपनी माँ बाप की खिदमत करके जन्नत हासिल ना कर सका )
हवाला := (1) तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2 सफ़ा 333 हदीस 1393 दुआ का बयान ।
(2) मशकवाह शरीफ जिल्द 1 सफ़ा 196 हदीस 861 दरूद का बयान ।
(3) मुजाहिर हक़ जिल्द 1 सफ़ा 299 दरूद का बयान ।
इस हदीस की शरह में हमारे हनफ़ी मसलक के फिकहाये किराम फरमाते है :-
ख़ाक आलूद हो यानी खुवार और हलाक हो वो शख्श के ज़िक्र किया जाउ में यानी नाम लिया जाए मेरा उसके सामने और वो दरूद ना भेजे मुझ पर - ज़ाहिर इस हदीस का ये है के हर बार मजलिस में जब नाम मुबारक हुज़ूर सल0 का लिया जाये तो दरूद भेजना वाजिब होता है । इस लिए के तर्क पर वईद आई है ।
हवाला:= मुजाहिर हक़ जिल्द 1 सफ़ा 300 दरूद का बयान ।
मेरे भईय्या । मज़हबी अमल तो किताबो पर होना चाहिए किसी की ज़बान पर नही - कम से कम हदीसो की तो लाज रखो - तुम अपने आप को सुन्नी कहते हो तो अहले सुन्नत वल जमात के उलेमाये दीन वा फिकहाये किराम के फतवो की तो शर्म रखो - कहाँ तक जहालत में डूबे रहोगे शरीअत का भी तो कुछ ख्याल करो ।
इज्मा है के तमाम उमर भर में एक बार दरूद शरीफ का पढ़ना फ़र्ज़ है और हर बार जब ज़िक्र हो तो वाजिब है ।
हवाला := ऐन अल्हिदाया जिल्द1 सफ़ा 399 नमाज़ का बयान ।
दरूद पढ़ना फ़र्ज़ है उमर भर में एक बार और वाजिब है जितनी बार के ज़िक्र नामें मुबारक हो मज़हब सही से ।
हवाला := दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफ़ा 242 नमाज़ का बयान ।
अगर सुनने वाले ने नबी करीम सल0 का नाम मुबारक सुनते वक़्त दरूद ना भेजा तो दरूद भेजना उसकी गर्दन पर फ्तरज़ रहा ।
हवाला := फतावा आलमगीरी जिल्द 4 सफ़ा 262 कराहत का ब्यान ।
नबी करीम सल0 का नाम मुबारक सुनते वक़्त दरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है नही पड़ेगा तो फ्तरज़ होगा उस पर ।
हवाला := ऐन अल्हिदाया जिल्द 4 सफ़ा 317 कराहत का बयान ।
हुज़ूर सल0 का नाम मुबारक सुनते वक़्त दरूद शरीफ पढ़ना हमारे हनफ़ी मसलक के उलेमाये दीन वाजिब बताते है । एक मजलिस में जितनी बार भी हुज़ूर सल0 का नाम मुबारक सुने उतनी ही मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ना वाजिब है । इस का तो कुछ ख्याल करो, इस के अलावा जो दरूद शरीफ पढ़ने की फ़ज़ीलत आई है इस से क्यों मेहरूम रहते हो और लोगो को मेहरूम रख कर अल्लाह और उसके रसूल सल0 की नाराज़गी का सबब क्यों बनते हो ।
हदीस := हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि0 से रिवायत है के रसूल्लाह सल0 ने फ़रमाया के क़यामत के दिन मुझ से सब से ज़्यादा नज़दीक वो शख्श होगा जो मुझ पर सब से ज़्यादा दरूद भेजता है ।
हवाला := (1) तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1 सफ़ा 99 हदीस 432 जुमे का बयान ।
(2) मशकवाह शरीफ जिल्द 1 सफ़ा 196 हदीस 857 दरूद का बयान ।
(3) मुजाहिर हक़ जिल्द 1 सफ़ा 298 दरूद का बयान ।
मेरे अज़ीज़ दोस्त ज़्यादातर हदीसे दरूद शरीफ पढ़ने की फ़ज़ीलत में है और इस किस्म की भी हदीसे है के दरूद शरीफ हुज़ूर सल0 तक पहुचाये जाते है ।
हदीस := हज़रत ओस बिन ओस रजि0 फरमाते है के रसूल्लाह सल0 ने इरशाद फ़रमाया के तुम्हारे दरूद मेरे सामने पेश किये जाते है । ( मुख़्तसर ) ।
हवाला:= (1) अबु दाऊद शरीफ जिल्द 1 पारह 2 सफ़ा 398 हदीस 1034 बाब 358
(2) इब्ने माजा शरीफ सफ़ा 174 हदीस 1097 नमाज़ का बयान ।
मेरे अज़ीज़ दोस्त । वो इंसान कितना खुश नसीब है जिसका नाम हुज़ूर सल0 के सामने पेश किया जाए के फलां फलां आपके उम्मती ने आप सल0 पर दरूद का तोहफा भेजा है । हुज़ूर सल0 की रूह मुबारक इस तोहफे मुबारक से कितनी खुश होती होगी । इस मर्तबे को हासिल करने के लिए आज ही तैयार हो जा - अंघूठे चूमने चाटने छोड़ दे - क्योंकि अल्लाह ताला भी दरूद शरीफ पढ़ने को कहता है फिर भी अगर हम ना माने ना समझे तो ये हमारी सरासर जहालत और ज़िद है क्योंकि शरीअत का अमल तो उस पर होना चाहिए जो क़ुरआन और हदीस और फिका की किताबो से साबित है ।