अमरोहा। बावनखेड़ी की घटना को दस साल बीत जाने के बाद भी शबनम और उसके प्रेमी सलीम की फांसी की सजा नहीं हो पाई है। सुप्रीम कोर्ट से भी दोनों क...

अमरोहा। बावनखेड़ी की घटना को दस साल बीत जाने के बाद भी शबनम और उसके प्रेमी सलीम की फांसी की सजा नहीं हो पाई है। सुप्रीम कोर्ट से भी दोनों को कोई राहत नहीं मिली है। दोनों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास है। फिलहाल शबनम बरेली तो सलीम आगरा जेल में बंद है।
शबनम का नाम लेते ही गांववालों को खौफनाक रात की याद आ जाती है, जिसमें गांव के मास्टर शौकत अली के हंसते खेलते परिवार मौत की नींद सुला दिया गया। एक के बाद एक परिवार के सात सदस्यों को कुल्हाड़ी से वार कर मौत के घाट उतार दिया गया था।
इस घटना को अंजाम किसी और नहीं बल्कि मास्टर शौकत की शिक्षामित्र बेटी शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर दिया था। यूपी के अमरोहा जनपद के हसनपुर कस्बे से सटे छोटे से गांव बावनखेड़ी की शिक्षामित्र शबनम ने 15 अप्रैल 2008 की रात को प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता मास्टर शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस और राशिद, भाभी अंजुम और फुफेरी बहन राबिया का कुल्हाड़ी से वार कर कत्ल कर दिया था। भतीजे अर्श का गला घोंट दिया था। इस मामले अमरोहा कोट में दो साल तीन महीने तक सुनवाई चली।
आखिरकार 15 जुलाई 2010 को जिला जज एसएए हुसैनी ने शबनम और सलीम को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए तब तक उनका दम न निकल जाए का फैसला सुनाया। फैसले को दस साल हो गए। लेकिन फांसी के फंदे को दोनों की गर्दन का इंतजार है।
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